हाजिर जवाब बीरबल
एक बूढ़ी स्त्री अपनी विधवा बहू के साथ बीरबल से मिली। उसका बेटा सेना में था और कुछ रोज पहले ही एक लड़ाई में शहीद हो गया था।
बुढ़िया उनसे हाथ जोड़कर बोली, “सुना है कि शहंशाह अकबर आपकी बात मानते हैं। बेटे के शहीद हो जाने के बाद हम सास-बहू बेसहारा हो गई हैं। हमारी कुछ मदद करें।’
बीरबल ने बुढ़िया को ढाढ़स बंधाते हुए कहा, “आप चिंता न करें। हमारे शहंशाह बड़े ही दयालु हैं। वे आपकी मदद जरूर ही करेंगे। मैं जैसा कहता हूं बस वैसा ही आप करती जाएं।’ बीरबल के मुख से इतनी बातें सुनकर बुढ़िया अपने घर को लौट गई। दूसरे दिन वह बुढ़िया अपनी बहू को लेकर दरबार में हाजिर हुई।
उसने शहंशाह अकबर से विनती की और अपने शहीद बेटे की तलवार भी उनके सामने रख दी। फिर बोली, “शहंशाहों के शहंशाह, मेरे बेटे ने युद्ध से कभी मुंह नहीं मोड़ा। यह वही तलवार है, जिससे उसने बहुत सारे युद्ध लड़े। इस तलवार को आप अपने शस्त्रागार में सम्मान के साथ रखें।”
बादशाह अकबर ने उस तलवार को ध्यान से देखा। वह तलवार बहुत पुरानी थी और उसमें जंग भी लगी थी। बादशाह ने मन-ही-मन सोचा, “इस तलवार का क्या मोल। उन्होंने एक सैनिक को हुक्म दिया, “यह तलवार इस स्त्री को दे दी जाए और सोने की पांच मोहरें भी।” बीरबल को यह सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ।
वह शहंशाह से बोले, ““जहांपनाह , क्या में इस तलवार को देख सकता हूं।” बादशाह के ‘हां’ कहते ही बीरबल ने तलवार उठा ली और उसे ध्यान से देखा, फिर चुपचाप खड़े हो गए। शहंशाह अकबर ने बीरबल को देखते हुए पूछा,“बीरबल, इस तलवार में ऐसी क्या बात है कि तुमने इसे इतने गौर से देखा और चुपचाप खड़े हो गए? ‘
बीरबल बोले, ““जहांपनाह , मुझे पूरा विश्वास था कि यह तलवार सोने की बन जाएगी।!
बादशाह अकबर आश्चर्य से बोले , “क्या कह रहे हो , जंग लगी तलवार भला सोने की कैसे बन सकती है? ‘!
“बन सकती है , जहांपनाह।” बीरबल ने कहा।
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“जंग लगी लोहे की तलवार सोने की कँसे बन सकती है? अपनी बात को पूरा करो, बीरबल।”’ जहांपनाह ने सवाल कर दिया।
बीरबल बड़े ही शांत भाव से बोले, “जहांपनाह, पारस पत्थर का एक छोटा-सा टुकड़ा लोहे को सोना बना देता है। मैं तो यह सोच कर आश्चर्य में हूं कि आपके हाथों में आने के बाद भी यह तलवार लोहे की
ही बनी रही।” शहंशाह अकबर ने अगले पल ही हुक्म दिया कि इस बूढ़ी औरत को तलवार के वजन के बराबर सोना दिया जाए।
शहीद की विधवा और मां दोनों ही अकबर और बीरबल को दुआएं देते हुए दरबार से बाहर चली गई। किसी भी बात को ढंग से कहा जाए तो उसका परिणाम अच्छा ही होता है।