किसी गांव में हरिदत्त नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था उसके पास थोड़ी सी खेती थी उसी के सहारे उसके परिवार की जीविका चलती थी एक दिन उस ब्राह्मण ने खेत के समीप उगी एक झाड़ी की ओर जाते हुए एक काले नाग को देखा नाग बहुत बड़ा था और उसने अपना विशाल फन फैला रखा था झाड़ी के अंदर उस नाग का बिल था धीरे-धीरे वह नाग झाड़ी में घुसकर अपनी बिल में समा गया नाग के जाने के बाद ब्राह्मण ने सोचा कि यह नाग अवश्य ही इस इलाके का कोई देवता है मैंने अभी तक इसकी पूजा-अर्चना नहीं की है इसलिए आज इसने मुझे इस रूप में दर्शन देकर यह चेतावनी दी है कि मैं इसका सम्मान पूर्वक सत्कार किया करूं ऐसा विचार कर ब्राह्मण अपने घर गया और एक लोटे में दूध भरकर लाया उसने बिल के सामने एक उथले पात्र में लौटे का दूध उड़ेल दिया और नाग को नमन कर अपने कार्य में लग गया अगले दिन जब वह पुनः नाग के लिए दूध लेकर आया तो उसने एक चमत्कार देखा दूध का पात्र खाली था और उसमें एक स्वर्ण मुद्रा पड़ी थी ब्राह्मण समझ गया कि उसकी सेवा से प्रसन्न होकर नाग देवता ने यह स्वर्ण मुद्रा उसे प्रदान की है उस दिन से वह नियमित रूप से प्रतिदिन नाग को दूध पिलाता रहा और बदले में एक स्वर्ण मुद्रा रोज प्राप्त करता रहा इससे उसकी गरीबी बहुत हद तक समाप्त हो गई
एक दिन अकस्मात उस ब्राह्मण को किसी आवश्यक कार्य से गांव से बाहर जाना पड़ा तब उस ब्राह्मण ने अपनी इकलौती बेटा को पास बुलाकर यह आदेश दिया कि वह नित्य प्रतिदिन नाग देवता को दूध ले जाना ना भूलें पिता का आदेश मानकर अगले दिन उसका पुत्र दूध लेकर नाग देवता की बिल के पास पहुंचा और उसके सामने दूध का पात्र रखकर चला गया अगले दिन प्रातः जब वह पुनः दूध लेकर नाग के बिल के पास पहुंचा तो उसने दूध के खाली पात्र में एक स्वर्ण मुद्रा पड़ी देखी स्वर्ण मुद्रा को देखकर ब्राह्मण पुत्र के मन में लालच पैदा हो गया वह सोचने लगा इस बिल में जरूर कोई पुराने समय का खजाना दबा हुआ है नाग उसी खजाने में से स्वर्ण मुद्रा लाकर देता है क्यों ना मैं इस नाक को मारकर और इस बिल को खोदकर एक बार में ही सारा खजाना प्राप्त कर लूं ऐसा विचार कर वह लाठी लेकर नाग को मारने के लिए तैयार हो उठा नाग जैसे ही बिल से बाहर निकला ब्राह्मण पुत्र ने जोर से उस पर लाठी का प्रहार किया चोट खाकर नाग एकदम से उछला और ब्राह्मण पुत्र के माथे पर 10 मार दिया जहर इतना तेज था कि ब्राह्मण पुत्र दो कदम भी ना चल सका वह तत्काल गिरकर वहीं ढेर हो गया ब्राह्मण जब अपने घर लौटा तो उसे अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला उसने अपने पुत्र की करतूत का जब पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ लेकिन अब हो ही क्या सकता था विधि का विधान मानकर उसने संतोष कर लिया अगले दिन ब्राह्मण दूध लेकर नाग के बिल के पास पहुंचा और दूध रखकर नाग से प्रार्थना की कि वह बाहर आकर दूध ग्रहण कर ले लेकिन नाग ने उसकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी अंत में बार-बार ब्राह्मण की प्रार्थना पर नाग के बिल से बाहर अपना सर निकाला और ब्राह्मण से कहा वापस चले जाओ ब्राह्मण हमारी तुम्हारी मित्रता अब सदैव के लिए समाप्त हो चुकी है
हे नाग देवता मेरी इस भेंट को स्वीकार कर लो जो कुछ मेरे पुत्र ने आपके साथ किया उसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूं ब्राह्मण हाथ जोड़कर बोला इस पर नाग ने कहा सुनो ब्राह्मण तुम्हारी क्षमा याचना में लालच छिपा हुआ है पहले जब तुम मेरे लिए दूध लेकर आते थे तब तुम्हारे मन में लोभ नहीं था कि मैं बदले में तुम्हें कुछ दूंगा इसी कारण मैं तुम्हारी भेंट स्वीकार कर लेता था और भेट के प्रतिफल में तुम्हें स्वर्ण मुद्रा दे देता था किंतु अब तुम सिर्फ स्वर्ण मुद्रा प्राप्त करने के लालच में ही यहां आए हो तुम्हारे इकलौते पुत्र को मरे हुए मात्र दो ही दिन बीते हैं और तुम उसकी मृत्यु का शोक भूल कर मेरे पास दौड़े चले आए अब हमारी-तुम्हारी मित्रता कैसी
ऐसा कहकर नाग ने अंतिम बार एक हीरा ब्राह्मण को दे दिया और वह पुनः अपने बिल में सरक गए ब्राह्मण मुंह लटकाए वापस लौट आया इसलिए मित्रता वहीं निभती है जो निस्वार्थ भाव से की गई हो स्वार्थ वश की गई मित्रता जल्दी ही टूट जाती है