किसी समय चित्ररथ नाम का एक राजा अपने महल के समीप ही एक सुंदर सरोवर बनवाया हुआ था उस सरोवर में वर्ष भर कमल के फूल खिले रहते थे सरोवर में कुछ ऐसे हंस भी रहते थे जिनका वर्ण बिल्कुल सोने जैसा था वह हंस हर छह महीने बाद अपना एक – एक पंख गिरा दिया करते थे भूमि या जल में गिरते ही वह गेरू रंग के पंख सोने के बन जाते थे इस प्रकार अब तक वह हंस राजा के कोष में सोने की काफी वृद्धि कर चुके थे राजा ने उस सरोवर की रक्षा के लिए अनेक प्रहरी नियुक्त कर रखे थे
ये प्रहरी रात दिन सरोवर की निगरानी करते रहते थे एक दिन उस सरोवर में कहीं से घूमता – घुमाता एक स्वर्ण पक्षी आ पहुंचा हंसों की तरह उस पक्षी का रंग भी सोने जैसा था वह हंसों से थोड़ा दूर हटकर सरोवर के जल में तैरने लगा हंसो ने जब उस स्वर्ण पक्षी को देखा तो वह गुस्से से अपनी आंख फड़फ़ाड़ते हुए उसकी ओर झपटे कौन हो तुम ?
इस सरोवर में क्यों आए ? हम राजा को यहां रहने की कीमत भी चुकाते हैं तुम इस सरोवर में नहीं रह सकते हंसों के मुखिया ने कहा – इस पर स्वर्ण पक्षी बोला यह सरोवर राजा का है इसमें रहने का सबको अधिकार है तुम मुझे यहां रहने से नहीं रोक सकते
स्वर्ण पक्षी की बात सुनकर हंसो को बहुत गुस्सा आया ठीक है अभी तुझे मजा चखाते हैं ऐसा कहते हुए वे स्वर्ण पक्षी को चारों ओर से घेर लिया और उस पर चोंच एवं अपने पंखों से प्रहार करने लगे जान बचाने के लिए स्वर्ण पक्षी वहां से उड़कर सीधा राजा के पास जा पहुंचा उसने पहले तो राजा की प्रणाम किया फिर हंसो की शिकायत करते हुए बोला राजन आपके सरोवर में जो हंस रहते हैं क्या आपने उन्हें उस सरोवर का मालिक बना दिया है नहीं ऐसी बात तो नहीं सरोवर तो हमारा ही है तुम्हें यह संदेह कैसे हुआ राजा ने मुस्कुराकर पूछा
लेकिन हंस तो कुछ और ही बात कहते हैं वह कहते हैं कि हम प्रतिवर्ष उस सरोवर में रहने का कर्ज चुकाते हैं हम यहां वर्षों से रह रहे हैं इसलिए सरोवर पर अब हमारा अधिकार है दूसरा कोई पक्षी सरोवर में नहीं रह सकता उन्होंने इतना ही नहीं यह भी कहा कि राजा हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता हम जब तक चाहेंगे इस सरोवर में रहेंगे स्वर्ण पक्षी ने एक की चार – चार बनाकर राजा को उकसाया
स्वर्ण पक्षी की बात सुनकर राजा को गुस्सा आ गया वहां कानों का बहुत कच्चा था उसने तुरंत अपने सिपाहियों को बुलाकर आदेश दिया फौरन जाओ और उस सरोवर में रहने वाले हंसों को मार डालो वह बहुत अहंकारी हो गए हैं और अब अपने स्वामी को ही चुनौती देने लगे हैं
स्वामी का आदेश पाकर सिपाही तुरंत सरोवर पर पहुंचे और हथियार निकाल कर जल में घुस गए उन्हें ऐसा करते देख हंसों का मुखिया जो एक बुद्धिमान हंस था तत्काल हंसो से बोला मित्र जल्दी से इस सरोवर से निकल चलो यहां का राजा स्वर्ण पक्षी के बहकावे में आकर हमारा वध करने को तत्पर हो गया है यह सुनकर हंस एक-एक करके तालाब से उड़ गए और फिर कभी लौट कर उस सरोवर में ना आए बाद में राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ तो वह पछताने लगा
हंस प्रति छह माह में उसके कोष में बहुत सा सोना जमा कराते थे वह उससे वंचित हो गया बिना विचारे जो किसी दूसरे व्यक्ति पर क्रोध करता है तो उसे अंततः पछताना ही पड़ता है