आग और पानी या घोड़ा और घास की भला क्या मित्रता ? पर कभी – कभी ऐसा हो ही जाता है बहुत समय पहले एक गहरे कुएं में गंगदत्त नाम का मेंढक अपने बहुत से रिश्तेदारों के साथ रहा करता था सभी मेंढक उसे अपना राजा मानते थे फिर भी वह परेशान था मेंढक समाज उससे कई मांगे करता रहता और उसके रिश्तेदार तो उसे कुछ ज्यादा ही तंग करते दुखी गंगदत्त ने अब एक खतरनाक इरादा कर लिया कि वह सारे मेंढको को सबक सिखा कर ही रहेगा बदले की भावना लिए वह कुँए से निकल आया
कुएं से बाहर आकर गंगदत्त ने इधर-उधर आंख नचाई तो पास ही एक सांप बिल की और रेंगता नजर आया तुरंत उसके दिमाग में यह ख्याल आया कि अगर मैं इस सांप को अपने कुएं में ले जाऊं तो यहां मेरे सारे रिश्तेदार को खा जाएगा फिर मैं बड़े चैन से रहूंगा बस फिर क्या था?
उसने आवाज दी ! अरे हां तुम ही तुम से ही कह रहा हूं जरा यहां आओगे मेरी तो सुनो जरा जब सांप ने यह सुना तो समझ गया कि यहां आवाज सपेरे की तो हो नहीं सकती फिर भी पता नहीं कौन है ?
इसलिए उसने दूर से ही पता लगाने की नियत से पूछा कौन है ?
सांप की आवाज सुनते ही गंगदत्त ने कहा मैं गंगदत्त हूं, मेंढको का राजा मैं आपसे दोस्ती करने आया हूं अब सांप निश्चित हो गया और बोला ठीक है पर यह तो बताओ कि क्या कभी घास और आग दोस्त हो सकते हैं ?
मेंढक बोला हां भाई जो आप कह रहे हैं वह सच है हम जन्मजात दुश्मन है पर मेरी जान आफत में है इसलिए आप से मदद लेने आया हूं मैं चाहता हूं आप मेरे शत्रुओं को खा जाएं
सांप को गंगदत्त की यह बात दिलचस्प लगी यह पहला मेंढक है जो सांप को निवाले का न्योता दे रहा है वह बोला बताओ कौन सता रहा है तुम्हें ?
मेरे रिश्तेदार गंगदत्त ने जवाब दिया – तुम कहां रहते हो सांप बोला
कुएं में गंगदत्त ने फिर कहा – अब सांप बोला भाग जा मूर्ख ! मेरे पांव तो है नहीं जो मैं चल कर कुएं में जाऊं अगर चला भी गया तो कहां बैठकर तुम्हारे रिश्तेदारों को खाऊंगा ?
गंगदत्त ने गिड़गिड़ा कर कहा मेरी बात सुनो मैं तुम्हें किनारे पर एक बिल बताऊंगा और कुएं में जाने का रास्ता भी तुम वहां जाकर उन्हें खा सकते हो
सांप ने सोचा मैं बूढ़ा हो रहा हूं अब तो चूहा भी मुश्किल से पकड़ में आता है अगर इसकी बात मान लूं तो क्या हर्ज आराम से खाते-खाते जिंदगी बीत जाएगी उसने कहा तो भाई गंगदत्त तुम्हारी दोस्ती की खातिर मैं तैयार हूं चलो रास्ता बताओ गंगदत्त ने सांप की रजामंदी सुनी तो बहुत खुश हुआ उसने मन ही मन सोचा अब देखूंगा सबको
गंगदत्त ने नए दोस्त सांप को एक आसान रास्ते से कुएं में ले गया पहुंचते ही उसने सांप से कहा दोस्त तुम केवल मेरे रिश्तेदार ही खाना मैं इशारा करके बता दिया करूंगा कि किसे खाना है मेरे मित्रो को छोड़ देना सांप बोला – चिंता मत करो अब हम दोस्त हैं तुम जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूंगा यह कहकर वह गंगदत्त से बड़ी आत्मीयता से गले मिला
अब सांप कुएं में गंगदत्त के बताए बिल में रहने लगा गंगदत्त उसे इशारा करके अपने रिश्तेदारों की पहचान करा देता सांप उन्हें निगल लेता उसके दिन बड़े मजे से कटे जा रहे थे
एक एक करके सारे रिश्तेदार खत्म हो गए गंगदत्त का काम पूरा हो गया पर सांप का काम खत्म नहीं हो रहा था एक दिन उसने गंगदत्त से कहा देखो मुझे और खाने की जरूरत है वैसे भी तुम मुझे यहां लाए हो इसलिए यह तुम्हारा कर्तव्य है कि मेरा ख्याल रखो
गंगदत्त ने सांप से कहा दोस्त तुम सारे मेंढक खा चुके हो, इसलिए मैं बहुत आभारी हूं आपने मेरी खूब मदद की अब आप जहां से आए हैं वहीं लौट जाए यह सुनते ही सांप आग बबूला हो गया और बोला गंगदत्त तुम इतने मतलबी कैसे हो गए अब तक तो मेरे उस बिल पर किसी और ने कब्जा कर लिया होगा मैं तो बेघर हूं तुम मुझे अपने बाकी रिश्तेदार खिलाओ वरना मैं तुम्हें ही खा जाऊंगा
गंगदत्त को अब अपने किए पर पछतावा होने लगा वह जान गया कि सांप को यहां लाकर उसने कितनी बड़ी गलती की है ? अब एक ही चारा था कि दोस्त मेंढक भी सांप को खिलवाये जाए सांप अब गंगदत्त के दोस्तों को भी निवाला बनाने लगा एक दिन तो वह जमुनादत्त को ही खा गया जो गंगदत्त का बेटा था इस घटना से गंगदत्त को बहुत दुख पहुंचा आखिर सारे मेंढक खत्म हो गए ना बचे रिश्तेदार ना दोस्त रह गया सिर्फ गंगदत्त
सांप ने गंग दत्त को बुलाकर कहा देखो मैं भूखा हूं अब और कोई मेंढक भी नहीं बचा फिर तुम ही लाए हो मैं तुम्हारा मेहमान हूं इसलिए जल्दी से मेरे खाने का इंतजाम करो गंगदत्त ने कहा मेरे होते हुए तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है अगर आप मुझे आज्ञा दें तो मैं बाहर जाकर दूसरे कुएं से मेंढको का विश्वास जीतकर उन्हें इस कुँए तक ले आता हूं सांप उसकी बातों में आ गया
वह बोला मुझे तुम पर विश्वास है तुम तो मेरे भाई जैसे हो जाओ अपना वादा निभाओ
गंगदत्त ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया और तुरंत कुए से निकल पड़ा सांप उसका इंतजार करता रहा काफी समय हो जाने पर जब गंगदत्त नहीं लौटा तो सांप ने समीप ही रहने वाली छिपकली से कहा बहन तुम तो गंगदत्त को जानती हो क्या तुम उस तक मेरा संदेश पहुंचा सकोगी
उसे कहना, अगर मेंढक नहीं आ रहे हो तो ना आए पर वह तो आ जाए मैं उसके बगैर नहीं रह सकता मैं उसे नहीं खाऊंगा
छिपकली गंगदत्त को ढूंढती हुई दूसरे कुएं में पहुंची और उसे सांप का संदेश कह सुनाया सुनकर गंगदत्त बोला एक व्यक्ति जो भूखा है वह क्या पाप नहीं करेगा छिपकली बहन तुम सांप के पास जाकर कह देना कि अब मैं वापस नहीं आऊंगा