किसी नगर में चित्रांग नाम का एक कुत्ता रहता था चित्रांग बहुत ही चुस्त कुत्ता था वह अपना भोजन स्वयं ही खोज निकालता था देवयोग से एक बार उस क्षेत्र में अकाल पड़ गया खाने के अभाव में सभी जीव भूख से मरने लगे चित्रांग के कटुम्ब के भी अनेक कुत्ते भूख से मर गए तो वह चिंतित हो उठा वह अपना नगर छोड़कर दूसरे नगर में भाग आया उसने नगर में पहुंचकर उसे एक ऐसा घर मिल गया जिसकी ग्रहणी एक फूहड़ स्त्री थी वह अपने घर का दरवाजा कभी बंद नहीं करती थी बस फिर क्या था चित्रांग को जैसे ही मौका मिलता वह उसके रसोई घर में घुस जाता और जो कुछ भी मिलता सब चट कर जाता अच्छा और भरपेट भोजन मिलने के कारण शीघ्र ही चित्रांग खूब हष्ट-पुष्ट हो गया एक दिन जब वह उस स्त्री के रसोईघर से भरपेट भोजन करके बाहर निकल रहा था तो नगर के अन्य कुत्तों ने उसे देख लिया और वह उसे चारों तरफ से घेर कर बुरी तरह काटने और चीथने लगे उन्होंने उसे इतना कांटा कि चित्रांग का सारा शरीर लहूलुहान हो गया वह मरणासन्न हो गया
जब कुत्ते उसे छोड़ कर चले गए तो वह सोचने लगा इस नगर से अच्छा तो अपना ही नगर है बेशक वहां भुखमरी है किंतु कोई इस तरह अपने जाति भाई को काटने को तो नहीं दौड़ता ऐसा सोचकर वह अपने नगर वापस लौट आया
चित्रांग के वापस लौटने पर उसके सगे-संबंधी इकट्ठा होकर उससे उस नगर का हाल-चाल पूछने लगे चित्रांग बोला भैया उस नगर की बात मत पूछो वहां किसी चीज की कोई कमी नहीं है हर चीज बहुतायत से उपलब्ध है लोग संतुष्ट और प्रसन्न है हर कोई भरपेट भोजन करता है लेकिन एक बात की बहुत कमी है वहां और वह यह कि वहां अपनी ही जाति के लोग एक दूसरे के बहुत विरोधी हैं वे प्रायः परस्पर लड़ते रहते हैं भूल से भी यदि दूसरी जगह का कोई कुत्ता वहां पहुंच जाए तो समझ लो उसकी तो शामत ही आ गई उसकी ऐसी दुर्गति बनाते हैं कि पूछो मत मैं इस बात का भुक्तभोगी हूं उन्होंने मेरी ऐसी दुर्दशा कर दी थी कि मैं मरणासन्न हो गया था बड़ी मुश्किल से जान बचाकर यहां तक पहुंचा हूं अब तो मैंने निश्चित कर लिया है कि भूलकर भी कभी दूसरे नगर में नहीं जाऊंगा चित्रांग की बात सुनकर उसके संबंधी ने उस से सहमति जताई बोले अपना घर अपना ही होता है उस से बढ़कर दूसरी जगह सुख कहां ? मातृभूमि से अच्छी भला और कोई जगह कैसे हो सकती है?