बहुत समय पहले चंद्र नामक राजा राज्य किया करता था राजा के पुत्र को बंदर पालने का बहुत शौक था उसने राजा के महल में बहुत से बंदर पाल रखे थे इन बंदरों का मुखिया बहुत चालाक नीतिवन और समझदार था वह अपने झुंड के सभी बंदरो को सही सलाह देता था कुछ दिन बाद महल मैं एक जोड़ा भेड़ भी आ गया वह जोड़ा बग्गी खींचता था उनमें से एक बड़ा ही पेटू था वह जब – तब अवसर देखकर राजा की रसोई में घुस जाता और कुछ भी खा जाता उसकी हरकतों से रसोईया बड़ा परेशान था जब कभी भेड़ उसकी उपस्थिति में रसोई में घुसता तो वह चिमटा, डंडा, बेलन जो भी हाथ आता उसी से पिटाई कर देता
बंदरों के राजा ने जब यह देखा तो उसने काफी आगे का भी अनुमान लगा लिया कि रसोईया और भेड़ की इस लड़ाई का क्या परिणाम हो सकता है उसने सोचा कहीं रसोईया और भेड़ की लड़ाई हम बंदरों तक आ गई तो रसोईया अक्सर उस पर कुछ भी फेंक देता था यहां तक कि गर्म गर्म चीज भी बंदरों के राजा ने सोचा मान लो किसी दिन रसोईया ने भेड़ पर कोई जलती चीज गुस्से से फेंक दी तो भेड़ के शरीर पर तू रोए हैं वह जलने लगेंगे तब भेड़ बचने के लिए अस्तबल की और भागेगा वहां सूखी घास है घास में आग लग जाएगी इससे घोड़े भी जल जाएंगे घोड़ों के उपचार के लिए जब वैध आएगा तो वह दवा के रूप में घोड़ों के लिए बंदरों की चर्बी मांगेगा तब राज्य के सारे बंदर मारे जाएंगे
मुखिया बंदर को इस तरह आने वाले घटनाक्रम का आभास हुआ तो उसने राजा के बाग में सभी बंदरों की सभा बुलाई और फिर कहा भाइयों रसोइए और भेड़ की लड़ाई में हमारी जान खतरे में है हमारी भलाई इसी में है कि हम यह जगह छोड़कर चले जाएं
मुखिया की बात सुनकर बाकी बंदर हंसने लगे – अरे भेड़ और रसोईया की लड़ाई से भला हमारा क्या वास्ता मुखिया जी आप तो बूढ़े और पागल हो गए है कुछ बंदर कहने लगे – इतना अच्छा महल छोड़ कर हम क्यों जाएं देखो तो राजकुमार हमें कितना बढ़िया खाना खिलाता है कितने स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं यहां जंगल जाएंगे तो बस फल ही फल मिलेंगे सारे बंदर खी खी खी खी करके मुखिया की खिल्ली उड़ाने लगे यह देख मुखिया ने फिर चेताया – तुम लोग ना समझ हो इस तले – भुने भोजन का लालच तुम्हें मरवा देगा यह भोजन आखिर में जहर सिद्ध होगा मैं अपनी आंखों के सामने अपने लोगों का अंत नहीं देख सकता इसलिए मैं तो जंगल में जा रहा हूं यह कहकर मुखिया बंदर बड़ा उदास होकर जंगल की ओर कूच कर गया
अभी ज्यादा दिन नहीं बीते थे कि एक दिन भेड़ खाने में मुंह मारने की नियत से रसोई में घुसा उस समय रसोईया चूल्हा फूंक रहा था जैसे ही उसने भेड़ को अंदर देखा जलती लकड़ी उठाकर उस पर फेंक दी भेड़ का शरीर धू-धू कर जलने लगा जलता हुआ भेड़ अब आग बुझाने की हड़बड़ाहट में घोड़ों के अस्तबल में जा घुसा वहां सूखी घास बहुत थी
वह घोड़ों को पसंद थी इसलिए उसका भरपूर ढेर लगा था भेड़ के वहां पहुंचने से उसमें आग लग गई अब पूरा अस्तबल जलने लगा कई घोड़े जल – मरे कुछ की आंखें जल गई तो कुछ अब जली हालत में नगर की ओर भाग निकले जिससे वहां भगदड़ मच गई जब राजा को यह सूचना मिली तो वह बड़ा दुखी हुआ उसके अस्तबल के कई घोड़े बड़े महंगे थे उसने तत्काल राजवैध को बुलाकर और जले घोड़ों के उपचार की आज्ञा दी राजवैध ने राजा को बताया महाराज जले घोड़ों के उपचार के लिए तो बंदरों की चर्बी की आवश्यकता है अगर आप उपलब्ध करा दें तो मैं उपचार आरंभ करू
राजवैध की सलाह पर राजा ने आज्ञा जारी की कि बगीचे सहित राज्य के सारे बंदर मारकर उनकी चर्बी राजवैध को पहुंचाई जाए बस फिर क्या था बंदरों की शामत आ गई उन्हें पकड़ पकड़ कर मारा जाने लगा अब उन्हें अपने मुखिया के बोल और सीख याद आने लगी पर अब सिवाए मृत्यु के कोई चारा भी तो नहीं था आखिर सारे बंदर मार दिए गए
उधर जंगल में मुखिया बंदर को जब राजा द्वारा अपने रिश्तेदार बंदरों की हत्या कराए जाने की सूचना मिली तो वह बहुत दुखी हुआ उसने खाना पीना छोड़ दिया अब वह यहां – वहां भटकता और एक ही बात सोचा करता था कि कैसे राजा से बदला लिया जाए ?
एक दिन घूमते हुए वहां पानी पीने एक तालाब के किनारे पहुंचा वहां कमल के बड़े-बड़े फूल खिले थे उसने तालाब के पास देखा कि वहां कुछ जानवरों और लोगों के पाव के चिन्ह बने हैं जो तालाब की ओर जाते हैं पर वापसी के नहीं हैं मुखिया बंदर बड़ा नीतिवान था वह भाप गया है कि जरूर तलाब में कोई भयानक प्राणी रहता है जो पानी पीने और आने वाले को चट कर जाता है
बंदर कई दिनों से प्यासा था इसलिए उसने बड़ी सावधानी से काम लिया और कमल की एक शाखा तोड़कर उस की नली को तालाब में डाला और मुंह से पानी खींच कर अपनी प्यास बुझाई तभी तालाब में रहने वाला एक बड़ा प्राणी बाहर आया उसका मुंह विशाल था और गले में मूल्य रत्नों की माला थी आते ही उसने कहा यहां जो भी पानी पीने आता है मैं उसे खा जाता हूं लेकिन तुम्हारी सूझबूझ से मैं प्रभावित हूं मांगो क्या मांगते हो?
मुखिया बंदर तो जैसे ऐसे ही मौके की प्रतीक्षा में था उसने कहा अगर तुम मुझे अपनी या मूल्यवान माला कुछ दिन के लिए दोगे तो मैं उसका लालच दिखा कर अपने शत्रु को इस तालाब तक ले आऊंगा फिर तुम उन्हें खा सकते हो उस प्राणी को बंदर की बात जम गई उसने तुरंत रत्नों की माला बंदर को दे दी बंदर ने उसे गले में पहना और कूदता हुआ राजा चंद्र के यहां जा पहुंचा राजा के राज्य में जब लोगों ने मुखिया बंदर को देखा तो पूछने लगे मुखिया जी कहां थे ? इतने समय से यह कीमती हार तुम्हें कहां से मिला ? बंदर ने लोगों को बताया यह माला मुझे खुद खजाने के राजा कुबेर ने दी है कुबेर ने जंगल में एक तालाब बनवाया है वही उसका खजाना है रविवार को जब आधा सूर्य उगा हो तब तालाब में स्नान करने पर ऐसा हार पुरस्कार स्वरूप मिलता है बंदर से हार का राज सुनकर लोग लालच में उमड़ने लगे जब यह बात राजा को मालूम हुई तो उसने बंदर को बुलाकर पूछा – क्या वह तालाब हीरो से भरा है ? अगर ऐसा है तो सबसे पहले अपने परिजनों के साथ मैं वहां जाऊंगा बंदर बोला – हां महराज ! अब महाराज भी लालच में आ गया वह अपने पूरे परिवार के साथ तालाब की ओर चल पड़ा राजा ने बंदर को गोदी में उठा लिया था
रानी मंत्री वगैरह उसकी पीठ सहला रहे थे जैसे ही तलाब आया बंदर ने कहा – जब सूर्य आधा उगा हो तब आप सब एक-एक करके इस ओर से तलाब में जाना और दूसरी ओर से निकलते जाना लेकिन राजा साहब आप मेरे साथ आइए मैं आपको अलग रास्ते से स्नान करआऊंगा राजा उसकी बातों में आकर एक तरफ हो लिया जबकि उसका परिवार और बाकी लोग तालाब में चले गए पर लौटे नहीं उस प्राणी ने उन सबको खा लिया जब काफी देर तक रानी, राजकुमार, मंत्री – संत्री आदि नहीं लौटे तो राजा ने मुखिया बंदर से पूछा – यह लोग इतनी देर क्यों लगा रहे हैं राजा के यह पूछते ही मुखिया बंदर जल्दी से एक पेड़ पर चढ़ गया और वहीं से जोर से बोला दुष्ट राजा ! तालाब में रहने वाले प्राणी ने तुम्हारे पूरे परिवार को खा लिया है तुमने मेरा परिवार मिटाया इसलिए मैंने तुमसे उसका बदला ले लिया तुम्हे मैंने इसलिए छोड़ दिया क्योंकि तुम कभी मेरे स्वामी रहे हो ? जैसी करनी वैसी भरनी मुखिया बंदर के मुख से अपने परिवार के सर्वनाश की बात सुनकर राजा ने अपने को बहुत कोसा और रोता – रोता अकेला वापस अपने राज्य को लौट गया