एक राजा अपने बेटे से बहुत दुखी था कारण यह कि वह बहुत बिगड़ चुका था राजा ने उसे सुधारने के लिए सारे प्रयत्न कर डाले, पर वह नहीं सुधरा राजा ने उसे लालच दिया उपहार दिए पर वह उल्टे ही दिमाग का था नहीं सुधरा तो नहीं सुधरा बिगड़ा राजकुमार किसी की भी भावना का सम्मान करना नहीं जानता था दरबार के लोग उसे समझाते कि तुम ठीक हो जाओ तुम्हारी हरकतों से राज्य की छवि प्रभावित हो रही है पर राजकुमार में सुधार नहीं आया
एक बार राजा अपने महल के बाहर टहल रहा था तभी उसने हाथ में कटोरा लिए एक साधु को भिक्षा मांगते देखा उस साधु के मुख पर संतुष्टि और तेज देखकर राजा सोचने लगा कि यह जरूर मेरी मदद कर सकता है उसने साधु को आवाज लगाई महाराज ! साधु ने जब राजा की पुकार सुनी तो वह उसके पास पहुंचा राजा ने साधु से कहा मेरी इच्छा है कि आप हमारे पास रहें और हमें सेवा का अवसर प्रदान करें राजा की अनुनय – विनय सुनकर साधु मना नहीं कर सका और कुछ दिन के लिए राजा का मेहमान हो गया
एक दिन दुखी होकर राजा ने साधु से कहा मेरा बेटा बहुत बिगड़ चुका है वह सुधरता ही नहीं राज्य की प्रजा भी उससे अब युवराज मानने से मना करने लगी है अब राजपाट चलाना भी कठिन हो रहा है मैं बहुत चिंतित हूं कृपया मेरी मदद कीजिए
साधु ने राजा की मदद करने का निश्चय किया और अगले ही दिन वहां बिगड़ैल राजकुमार को महल के बगीचे में ले गया वहां साधु ने एक वृक्ष की ओर संकेत करके उसे उस वृक्ष का एक पत्ता खाने को कहा ? जैसे ही राजकुमार ने वहां पत्ता मुंह में रखा साधु ने उसका स्वाद बताने को कहा ? पत्ता खाते ही राजकुमार का मुंह बिगड़ गया उसने गुस्से में मुंह बनाकर साधु से कहा –
तुमने यह क्या खिलवा दिया कहीं यह जहरीला तो नहीं कितना कड़वा है तुमने मुझे यह क्यों खिलवाया ? राजकुमार आगे बोला – और बड़ा होकर तो यह ना जाने कितने लोगों को हानि पहुंचाएगा ? यह कहते हुए राजकुमार ने उसे जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया
साधु ने उखड़े पौधों को उठाया और फिर राजकुमार को दिखाते हुए कहा कल तुम्हारे राज्य के लोग भी तुम्हें इसी तरह उखाड़ कर फेंक देंगे क्या तुम जानते हो कि तुम्हारे राज्य के लोग तुम्हें भी ऐसा ही बुरा समझते हैं साधु ने उसे फिर समझाया तुम लोगों पर दया दृष्टि रखो ताकि वे तुम्हारा सम्मान करें
राजकुमार को साधु की बात समझ में आ गई और उसी क्षण उसका व्यवहार बदल गया