एक बार एक मुर्गे और एक पक्षी में मित्रता हो गई दोनों साथ – साथ बैठते एक दूसरे का हालचाल जानते यह सुनकर समय बिताते एक दिन पक्षी ने मुर्गे से कहा सुना है कि तुम बड़ी कपटी हो बेईमान भी हो यह सुनकर मुर्गा सन्न रह गया फिर कुछ सोच कर बोला तुम ऐसा क्यों बोल रही हो तुमने मुझ में कौन सी बेईमानी देखी है बताओ तो यह कहकर मुर्गा गुस्से से पंख फैलाने लगा
तो पक्षी ने कहा देखो तो तुम अपने स्वामी को कितना सताती हो दिन में वह तुम्हें दाना खिलाता है रात में डब्बे मैं रखकर तुम्हारी रक्षा करता है फिर भी तुम उसे हाथ नहीं लगाने देते यहां वहां उसे अपने पीछे दौड़ आते हो क्या यह अच्छी बात है
हमें देख लो हमारी कोई देखभाल नहीं करता पर जब कोई आदमी हमें फालतू बनाता है तो हम उसके साथ रहते हैं उसकी मानते हैं कहीं भी हो उसकी एक आवाज पर उड़कर उसके पास आ जाते हैं
पक्षी की बात सुनकर मुर्गा बोला तुम सच कह रही हो मैं तुम्हें झूठा नहीं कह सकता लेकिन तुम्हें क्या पता कि हम आदमियों को अपने पीछे क्यों दौड़वाते हैं तुम्हें कैसा लगेगा जब तुम किसी दूसरे पक्षी को काटे जाते या अग्नि पर सेके जाते देखो तो
जब हमारा स्वामी हमें पकड़ कर आग में भूनना चाहता है तब हम बचने के लिए यहां-वहां दौड़ते हैं मैं तो एक कोने से दूसरे कोने ही भागता हूं लेकिन यदि ऐसा तुम्हारे साथ हो तो तुम एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ की और भागोगे समझे मुर्गे की बात सुनकर पक्षी निरुत्तर हो हो गया जिस पर जो बीती है वही तो जान पाता है