ब्रह्मदत्त दूर किसी नगर में काम से जा रहा था वह नगर काफी दूर था उसके परिवार वाले भी चिंता में थे कि वह अकेले कैसे जाएगा जाने से पूर्व माँ ने पूछा बेटा तुम अकेले जा रहे हो क्या कोई और भी तुम्हारे साथ जा रहा है नहीं मैं मैं बिल्कुल अकेला ही जा रहा हूं ब्रह्मदत्त ने कहा –
यह सुनकर उसकी मां उदास हो गई वह कहने लगी – तुम्हारा इस तरह अकेले जाना ठीक नहीं है मार्ग में चोर – लुटेरे और जंगली जानवर हैं फिर कुछ सोच समझकर वह बोली मैं तुम्हें एक चीज देती हूं ब्रह्मदत्त ने चौक कर पूछा क्या ? तभी माँ ने एक छोटा केकड़ा लाकर ब्रह्मदत्त को दिखाया और उसे देते हुए कहा – यह केकड़ा तुम्हारा रास्ते का साथी बन कर जाएगा इसको अपने साथ रखना अकेले रहने से दो का रहना अच्छा होता है
अब ब्रह्मदत्त को हंसी आ गई यह जरा सा केकड़ा और मेरा साथी यह मेरी क्या सहायता करेगा ?
पुत्र की बात सुनकर माँ उदास हो गई, तो माँ को खुश करने के लिए ब्रह्मदत्त ने कहा – मां तुम ठीक ही कह रही हो मैं यह केकड़ा अपने साथ ले जाता हूं इसे एक डब्बे में रख दो मैं इसे झोले में रखकर अपने साथ ले जाऊंगा
ब्रह्मदत्त अपनी यात्रा पर निकल पड़ा चलते-चलते थक गया तो कुछ देर विश्राम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रोका तो उसे नींद आ गई और वह वही सो गया जिस पेड़ के नीचे वह सो रहा था वही एक भयानक सांप भी था
सांप रेंगता हुआ झोले के पास आया और उसमें रखा डिब्बा खोलने लगा उसे उसमें से खाने की गंध आ रही थी जैसे ही डब्बे का ढक्कन खुला केकड़े ने सांप को मौका दिए बिना उसकी गर्दन दबोच ली सांप वही तड़प कर मर गया
थोड़ी देर बाद ब्रह्मदत्त की निद्रा टूटी पास में मरा सांप देखकर वह समझ गया कि केकड़े ने उसे मारा है और मेरी जान बचाई है अगर यह केकड़ा नहीं होता तो सांप तो मुझे डस ही लेता अब मैं समझा कि किसी को भी छोटा और बेकार नहीं समझना चाहिए