किसी घने जंगल में एक बहुत बड़ा सरोवर था उस सरोवर में एक हंस रहता था जो बड़े आनंद के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा था एक दिन कहीं से घूमता – घुमाता एक उल्लू वहां आ पहुंचा उसने पहले तो सरोवर से जल पिया फिर अपनी दृष्टि इधर-उधर घुमाई उसे वह स्थान बहुत रमणीक लगा इसलिए उल्लू ने निश्चय किया कि अब वह इसी स्थान पर रहेगा उल्लू को वहां देख कर हंस उसके पास पहुंचा और बोला देख क्या रहे हो उल्लू भाई इस समय तो यह स्थान बहुत सुहाना दिख रहा है
लेकिन गर्मी आते ही यहां की सारी सुंदरता नष्ट हो जाती है सरोवर सूख जाता है सूर्य के ताप से सारी वनस्पतियां जल जाती है तब यह स्थान बहुत है भयावह लगने लगता है अगर तुम यहां रहने की सोच रहे हो तो अपना विचार बदल दो कहीं और जाकर अपना ठिकाना बना लो
नहीं भाई हंस – मैं तो निश्चय कर चुका हूं कि अब यही रहूंगा यह जगह मुझे बहुत पसंद आ गई है उल्लू ने कहा फिर तो ठीक है शौक से यहां रहो एक से दो भले तुम साथ रहोगे तो मेरा भी अकेलापन दूर हो जाएगा हम दोनों साथ – साथ रहकर गर्मियों के दिन गुजार देंगे हंस बोला
उस दिन से उल्लू वहीं रहने लगा जब तक शरद ऋतु का समय रहा सब कुछ सामान्य रूप से चलता रहा लेकिन गर्मियों की ऋतु आते ही उल्लू बेचैन रहने लगा सरोवर का जल भी सूखने लगा और जंगल की रौनक समाप्त होने लगी तो एक दिन उल्लू ने कहा हंस भाई मैं तो कल इस स्थान को छोड़कर अपने पुराने ठिकाने पर जा रहा हूं यह सरोवर अब सूखने लगा है जल के बिना तुम कैसे रहोगे चाहो तो मेरे साथ चले चलो
निमंत्रण के लिए धन्यवाद किंतु मैं यह स्थान छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा यहां से थोड़ी ही दूर एक छोटी सी नदी है जब इस सरोवर का जल सूख जाएगा तो मैं वहां चला जाऊंगा फिर जब वर्षा से यह सरोवर भर जाएगा तो पुनः यहां लौट आऊंगा हंस ने कहा
ठीक है तो फिर यहीं रहो मैं तुम्हें अपना पता बता देता हूं मैं नदी के किनारे एक बरगद के पेड़ पर रहता हूं जब भी मुझसे मिलना हो वहां चले आना हम दोनों इकट्ठे रहकर आनंद से अपना जीवन गुजारेंगे उल्लू ने कहा और हंस से विदा लेकर उड़ गया
उल्लू के जाने के बाद हंस ने भी अपना ठिकाना बदल दिया और उस सरोवर को छोड़कर नदी पर चला गया लेकिन कुछ दिन बाद जब वह नदी भी सूख गई तो वह अपने को अकेला महसूस करने लगा और एक दिन वह उड़कर उल्लू के ठिकाने तक पहुंच ही गया उल्लू ने बड़ी गर्मजोशी से हंस का स्वागत किया उसने हंस को स्वादिष्ट भोजन कराएं और ठंडा जल पीने के लिए दिया
हंस एक लंबी यात्रा तय करके वहां पहुंचा था इसलिए भोजन करने के बाद उसे नींद आने लगी तो वह उल्लू के समीप ही बरगद की एक दूसरी डाल पर अपने पंख फैला कर सो गया
उसी शाम कुछ यात्री अपनी यात्रा से थक कर बरगद के पेड़ के नीचे ठहर गये उन्होंने वही अपना रात्रि का भोजन लिया और सो गए जब आधी रात हुई और चंद्रमा निकला तो उल्लू ने नीचे उन यात्रियों को देख कर जोर-जोर से चीखना आरंभ कर दिया उल्लू की डरावनी चीखें सुनकर यात्री जाग उठे उन्होंने समझा की इस पेड़ पर कोई बुरी आत्मा रहती है
जो उन्हें डरा कर यहां से भगा देना चाहती है यात्रियों में से किसी ने अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और उसी आवाज की दिशा में लक्ष्य करके चला दिया उल्लू को तो अंधेरे में भी सब कुछ दिखाई देता है इसलिए यात्री ने जैसे ही बाण चलाया उल्लू तत्काल उड़कर दूसरी डाल पर जा बैठा और बाण जा लगा सीधे हंस के शरीर में बाण लगते ही हंस की मौत हो गई वह तत्काल नीचे आ गिरा
इसलिए कहा गया है कि बुरे की संगत कभी मत करो उल्लू के संग रहने के कारण बेचारा निर्दोष हंस अपने प्राण गवा बैठा