किसी समय उज्जैन राज्य में ईश्वर नामक एक धनी व्यापारी रहता था उसके चार दमाद थे एक बार चारों दमाद उसके यहां आए ईश्वर और उसकी पत्नी ने उनकी जी भर सेवा की उनकी सेवा से दमाद अपने-अपने घरों को भूल गए वह अब जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे ससुराल में पड़े – पड़े उन्हें छ महीने गुजर गए
एक दिन ईश्वर ने अपनी पत्नी को बुलाया और समझाते हुए कहा इस आवभगत के कारण ही अपने दामाद वापस अपने घर जाने को नहीं सोच रहे हैं इसलिए तुम कल से उनको पाँव धोने के लिए पानी नहीं दोगी पत्नी ने अगले दिन उसकी आज्ञा का पालन किया पहला दमाद होशियार था वह उसका अर्थ समझ गया और उसी दिन विदा ले लिया
अगले दिन ईश्वर की पत्नी ने बाकी दमादो को बैठने को गंदी और खराब कुर्सियां दी दूसरा दामाद जिसका नाम सोमवार था समझ गया कि अब चलना चाहिए और वह भी चला गया तीसरे दिन बाकी दो दामादो को अच्छा भोजन नहीं परोसा गया तो तीसरा दमाद भी प्रस्थान कर गया
अब रह गया चौथा दमाद जो बड़ा ही घाघ और अड़ियल था वह ससुराल के बदलते व्यवहार और पूछ – परख से अनजान बनकर डटा रहा तो ईश्वर ने उसे धक्के मार कर निकाल दिया और अपनी पत्नी से कहा – सम्मान और लालच को इसी तरह नियंत्रित किया जाता है