पहले समय में किसी गांव में यज्ञदत्त नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था वह बहुत सज्जन और दयालु व्यक्ति था किंतु उसकी पत्नी बहुत ही कटुभाषणी थी वह हर समय ब्राह्मण को कोसती और ताने मारती रहती थी इससे तंग आकर एक दिन यज्ञदत्त घर से निकल गया उसने निश्चय कर लिया कि अब वह धन कमाकर ही घर वापस लौटेगा
यज्ञदत्त नगर की ओर चल दिया रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था जंगल से गुजरता हुआ यज्ञदत्त आगे ही आगे बढ़ता गया अब वह अपने गांव से काफी दूर निकल आया था उसने सोचा कि कुछ देर विश्राम कर लो फिर आगे बढूंगा यह सोचकर जब उसने अपनी निगाह घुमाई तो
उसे एक सूखा कुँवा दिखाई दिया उस कुएं से याचना भरी आवाज आ रही थी कुएं में से कोई कह रहा था कि है पार्थिक हमारी मदद करें उस कुएं के पास जाकर यज्ञदत्त ने उस में झांका तो उसके अंदर एक बाघ एक आदमी एक सांप और एक बंदर दिखाई दिए सबसे पहले बाघ ने उससे याचना की औ मेहरबान यात्री में इस सूखे कुएं में कैद होकर रह गया हूं कृपा करके मुझे ऊपर निकाल लो जिससे मैं जंगल में जाकर अपने बाल बच्चों के पास रह सकूं
बाघ की बात सुनकर यज्ञदत्त कुछ भयभीत हो गया उसने बाघ से कहा तुम्हें कुएं से क्यों बाहर निकालूं क्या मैं जानता नहीं कि कुएं से निकलते ही तुम सबसे पहले मुझ पर ही हमला करोगे
मैं ईश्वर की सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं तुम्हें कोई हानि नहीं पहुंचाआऊंगा उल्टे मैं तुम्हारा बहुत आभार मानूंगा बाघ ने कहा बाघ की याचना सुनकर दयालु यज्ञदत्त का मन पिघल उठा उसने कुएं में कुछ नीचे लटक कर बाघ को बाहर निकाल दिया बाघ ऊपर पहुंचा ही था कि नीचे से बंदर ने आवाज लगाई है ब्राह्मण देवता मेहरबानी करके मुझे भी बाहर निकाल लो बंदर की बात सुनकर यज्ञदत्त ने इनकार में सर हिलाया और बोला नहीं मैं तुम्हें बाहर नहीं निकाल लूंगा तुम तो स्वभाव से ही बहुत चंचल हो क्या पता मैं तुम्हारी सहायता के लिए हाथ बढ़ाऊ और तुम मुझे ही खींच लो
मेरा विश्वास करो ब्राह्मण देवता मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूंगा मेहरबानी करके तुम मुझे बाहर निकाल लो बंदर ने प्रार्थना की यज्ञदत्त दयालु प्रवृत्ति का व्यक्ति था उसे बंदर पर दया आ गई उसने हाथ बढ़ाकर उसे भी कुएं से निकाल दिया
इस बार सांप ने उस से प्रार्थना की ! है ब्राह्मण देवता मुझे भी बाहर निकाल लो लेकिन यज्ञदत्त ने दृढ़तापूर्वक इंकार कर दिया बोला तुम्हें कैसे बाहर निकालू तुम्हें बाहर निकाल लूंगा तो आजाद होते ही सबसे पहले मुझे डसोगे नहीं मैं ऐसी बेवकूफी नहीं कर सकता तुम कुएं में ही कैद रहो मेरे मेहरबान मुझसे डरने की आवश्यकता नहीं है मुझ पर कृपा करो मैं आपके इस उपकार को कभी नहीं भूलूंगा सांप बोला
सांप की ऐसी याचना सुनकर ब्राह्मण ने उससे भी कुएं से बाहर निकाल लिया कुएं में अब सिर्फ आदमी रह गया उसने भी यज्ञदत्त से प्रार्थना की हे दयालु व्यक्ति अब मुझे भी बाहर निकाल लो
ब्राह्मण उस व्यक्ति को निकालने पर अभी विचार कर ही रहा था कि बाघ बंदर और सांप बोल उठे नहीं ब्राह्मण देवता इस व्यक्ति को बाहर मत निकालना यह बहुत ही धूर्त है तुमने इसे बाहर निकाल लिया तो यह कभी ना कभी तुम्हें नुकसान पहुंचाए बिना ना मानेगा
यह तो इतना दुष्ट है कि जिस थाली में खाता है उसी में छेद कर देता है इसे कुएं में ही पड़े रहने दो लेकिन ब्राह्मण ने उनकी बातों पर ध्यान ना दिया उसने हाथ बढ़ाकर उस सुनार को भी कुएं से बाहर निकाल लिया जब चारों प्राणी ऊपर आ गए तो सबसे पहले बाघ ने ब्राह्मण का आभार व्यक्त करते हुए कहा हे ब्राह्मण तुमने मुझ पर बड़ा उपकार किया है मैं तुम्हारे इस उपकार को सदैव याद रखूंगा
कभी मेरी सहायता की आवश्यकता पड़े तो मुझे जरुर याद करना मैं सदैव तुम्हारी हर संभव सहायता के लिए प्रस्तुत रहूंगा लेकिन बाघ महाशय ! मुझे तुम्हारा पता ठिकाना तो मालूम ही नहीं है ब्राह्मण बोला इसका ठिकाना मैं जानता हूं आप मेरे पास आ जाना मैं तुम्हें इसकी गुफा बता दूंगा बंदर ने कहा पर मुझे तुम्हारे ठिकाने का भी तो पता नहीं है मित्र बंदर ब्राह्मण ने कहा सामने यह अमराइयो का झुंड देख रहे हो ना बंदर ने एक दिशा की ओर उंगली का संकेत करके बताया इन्हीं अमराइयो में मेरा ठिकाना है
इसके पश्चात सुनार ने भी अपना पता ठिकाना बताकर ब्राह्मण से कभी उसके यहां पधारने का आग्रह किया अंत में सांप ने कहा मित्र ब्राह्मण मेरा ठिकाना यहां से बहुत दूर निर्जन स्थान में है तुम वहां तक शायद ना पहुंच पाए इसलिए जब कभी तुम मेरी आवश्यकता महसूस करो सिर्फ मेरे स्मरण कर लेना मैं तुरंत तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा
ब्राह्मण ने उसकी बात से सहमति जताई फिर वह उनसे विदा लेकर अपने मार्ग पर चल पड़ा बाघ बंदर सांप और वह सुनार भी अपने-अपने ठिकाने को चल दिए संयोग की बात कि ब्राह्मण आगे चलकर जंगल में भटक गया और वहां उन अमराइयो में जा पहुंचा जहां बंदर ने अपना ठिकाना बताया था बंदर यज्ञदत्त को अपने यहां आया हुआ देखकर बहुत प्रसन्न हुआ उसने ब्राह्मण की खूब आवभगत की बंदर बोला ब्राह्मण देवता अब आप कुछ दिन मेरे यहां ही रहो मैं तुम्हारी भरपूर सेवा करूंगा
नहीं मित्र मेरी विवशता है मैं यहां अधिक दिन तक नहीं ठहर सकता बाघ से अवश्य मिलना चाहूंगा तुमने मुझे बताया था कि वह तुम्हारे समीप ही यहीं कहीं रहता है ब्राह्मण बोला
हां मैं उसका ठिकाना जानता हूं चलो मैं स्वयं उस से मिलवाने के लिए तुम्हारे साथ चलता हूं बंदर ने कहा
बंदर के साथ ब्राह्मण बाघ के यहां पहुंचा तो उसने खुले दिल से उसका स्वागत किया कुछ देर तक दोनों में प्रेम भरा वार्तालाप चलता रहा फिर ब्राह्मण ने उस से विदा मांगी तो बाघ बोला मित्र तनिक ठहरो जाने से पहले मैं तुम्हें कुछ भेट देना चाहता हूं बाघ अपनी गुफा में गया और लौटकर जब वापस आया तो उसके मुंह में कपड़े की एक गठरी दबी हुई थी उसने गठरी ब्राह्मण के सामने रख दी और बोला कुछ दिन पहले किसी देश का एक राजकुमार जंगल में आया था उसने मुझे देखा तो मुझे मारने के लिए अपनी तलवार निकाल ली
लेकिन मैंने उसे तलवार चलाने का मौका नहीं दिया और अपने अपने नाखून वे दांत से उसे चीर फाड़ दिया राजकुमार जो आभूषण पहने हुए था वह मैंने उसके शरीर से उतार लिए और उसी के एक कपड़े में बांध कर रख दिए मेरे तो यह किसी काम के नहीं हां तुम्हारे जरूर काम आ सकते हैं तुम इन्हें ले जाओ ब्राह्मण ने गठरी खोली तो उसमें रतन जटिल एक मणि माला सोने के कुंडल बाजू में पहनने जाने वाले बाजूबंद आदि मिले एक स्वर्ण जटिल मुकुट भी मिला जिसमें हीरा लगा हुआ था
ब्राह्मण ने सारा सामान लिया और विदा लेकर अपने घर लौट पड़ा रास्ते में यज्ञदत्त ने सोचा गांव जाने से पूर्व इन आभूषणों को यदि बेच दूं तो अच्छा रहे क्योंकि गांव में ना तो कोई बड़ा महाजन है और ना कोई सुनार जो इन आभूषणों का मूल्यांकन कर सके तभी उसे सुनार की याद आई और यह सोचकर कि वह इस विषय में उसकी मदद कर सकता है सुनार के गांव की ओर चल पड़ा
सुनार ने यज्ञदत्त का बहुत स्वागत सत्कार किया ऊंचे-ऊंचे आसनों पर स्थान दिया ठंडा शरबत पिलाया और बोला ब्राह्मण देवता आपने मुझ पर बड़ी कृपा की जो आप मेरे घर पधारे अब कुछ दिन यही रुकिए और मुझे अपनी सेवा का अवसर दीजिए ब्राह्मण ने कहा मित्र किसी अन्य अवसर पर आऊंगा तब कुछ दिन तुम्हारे यहां ठहर लूंगा पर अभी तो मैं तुम्हारे पास कुछ अन्य काम से आया हूं मेरे पास कुछ आभूषण है
मैं इन्हें बेचना चाहता हूं आपको इस विषय में अच्छा ज्ञान है आप इनका मूल्यांकन कर दो यह कहकर ब्राह्मण ने गठरी खोलकर आभूषण उसे दिखाएं उन आभूषणों को देखकर सुनार चौक पड़ा वह मणि माला और बाजूबंद को भी पहचान गया क्योंकि राजकुमार के लिए यह आभूषण उसी ने तैयार किए थे वह सोचने लगा कि यह ब्राह्मण अवश्य ही उन आभूषणों को राजमहल से चोरी करके लाया है यदि मैं इस बात की सूचना राजा के पास पहुंचा दूं तो राजा मुझे पुरस्कार देगा
ऐसा विचार कर सुनार ने ब्राह्मण से कहा ब्राह्मण देवता इन आभूषणों का मूल्यांकन करना मेरे अकेले की बात नहीं है मुझे अपने एक दूसरे साथी से भी इसका मूल्यांकन कराना पड़ेगा आप यही ठहरिये मैं उसे यह आभूषण दिखा कर जल्द ही वापस लौटता हूं
ऐसा कहकर सुनार अपने घोड़े पर सवार होकर शीघ्रता से राजा के पास पहुंचा और उसने सूचना दी कि राजकुमार के आभूषण मैंने एक व्यक्ति के पास देखे हैं जो इस समय मेरे घर पर मौजूद है सुनार के मुख से यह बात सुनकर राजा बड़ा क्रोधित हुआ उसने सैनिक भेज कर तुरंत ब्राह्मण को पकड़ लाने के लिए कहा और बिना उसकी कोई बात सुने उसे कारागार में डलवा दिया कारागार में बैठा हुआ ब्राह्मण अपने भाग्य को कोसने लगा उसे सुनार पर बहुत गुस्सा आ रहा था
जिसने उसके साथ धोखा किया था उसे बाघ बंदर और सांप का वह कथन भी याद आ गया जो उन्होंने सुनार के विषय में कहा था लेकिन अब हो भी क्या सकता था अचानक उसे सांप की याद आई सांप ने कहा था कि तुम जब भी मेरा स्मरण करोगे मैं तुरंत उपस्थित हो जाऊंगा ब्राह्मण ने उसी समय सांप का स्मरण किया और आश्चर्य उसके स्मरण करते ही सांप वहां उपस्थित हो गया ब्राह्मण ने उसे सारी बात बताई और कहा मित्र अब इस कारागार से तुम ही मुक्ति दिला सकते हो कोई ऐसा उपाय करो जिससे कि इस कारागार से मुक्त होकर मैं अपने घर लौट सकूं
सांप ने पलभर विचार किया फिर बोला ब्राह्मण देवता मैं आज रात को राजमहल में जाकर रानी को इस प्रकार दंश मारूंगा कि वह मूर्छित हो जाएगी फिर उसकी मूर्छा ना तो किसी सपेरे से और ना ही किसी वैध हकीम के इलाज से टूटेगी ऐसे में वह जरूर ऐलान करवाएगा कि जो कोई रानी को ठीक कर देगा
उसे मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा तब तुम स्वयं को प्रस्तुत कर उससे कहना कि मैं रानी को ठीक कर सकता हूं तुम्हारे स्पर्श मात्र से ही रानी ठीक हो जाएगी इससे राजा तुम्हे कारागार से मुक्त कर देगा और साथ में पुरस्कार भी देगा
ऐसा कहकर वह सांप तुरंत वहां से चला गया उसी रात उसने राजमहल में जाकर रानी को दंश लिया इसके प्रभाव से रानी अचेत हो गई फिर बिल्कुल वैसा ही हुआ जैसा सांप ने बताया था जब राज्य भर के वैध हकीम सपेरे आदि रानी की चेतना लाने में असफल हो गए तो यज्ञदत्त ने प्रहरी के द्वारा राजा के पास संदेश भेजा कि वह रानी को ठीक कर सकता है
इस पर राजा ने उसे तुरंत कारागार से मुक्त करवा कर अपने महल में बुला लिया ब्राह्मण ने रानी के मस्तक पर अपना हाथ रखा तो रानी उसी समय चैतन्य हो उठी उसके शरीर से विष का समस्त प्रभाव जाता रहा राजा ब्राह्मण से बहुत प्रसन्न हुआ सबसे पहले उसने ब्राह्मण का वह पक्ष सुना जिसके अपराध में गुस्से में आकर राजा ने उसे कारागार में बंद करवाया था ब्राह्मण सारी बात सच-सच कह सुनाई उसने यह भी बता दिया कि किस प्रकार उसके द्वारा उपकार करने पर एक बाघ ने उसे यह आभूषण दिए थे
सारी बात सुनकर राजा को सुनार पर बहुत क्रोध आया उसने सुनार को सैनिक भेजकर बुलवाया और कारागार में डाल दिया राजा ब्राह्मण से इतना प्रसन्न हुआ है कि उसने ना सिर्फ उसे बहुत से पुरस्कार दिए अपितु अपना मंत्री भी बना लिया धन और प्रतिष्ठा पाकर ब्राह्मण सुखी हो गया आभाव मिटते ही पत्नी की आदत में भी सुधार आ गया वह सभ्य भाषा में बात करने लगी यज्ञदत्त को तो उसने अपना भगवान ही मान लिया