बहुत समय पहले गंगा नदी के तट पर एक बहुत बड़ा आश्रम था जिसमें अनेक ऋषि मुनि रहते थे स्थान बहुत ही पवित्र था ऋषि गण बड़ी शांति के साथ वहां रहकर पूजा पाठ किया करते थे एक दिन उस आश्रम के कुलपति जब गंगा स्नान करने के बाद अंजलि में जल भरकर सूर्य को अर्पण कर रहे थे तभी उनके हाथों में बाज के पंजों से टूटी हुई एक छोटी सी चुहिया आ गिरी महर्षि को उस चुहिया पर दया आ गई उन्होंने अपने तपो बल से चुहिया को एक कन्या बना दिया और उसे ले जाकर अपनी निसंतान पत्नी को सौंप दिया संतान विहीन ऋषि की पत्नी कन्या को पाकर बहुत प्रसन्न हुई और उसे अपनी पुत्री मानकर बड़े लाड-प्यार से उसका लालन-पालन करने लगी धीरे-धीरे समय बीतता गया और वह कन्या बड़ी होती गई एक दिन ऋषि पत्नी ने अपने पति से कहा आर्य हमारी कन्या विवाह योग्य हो गई है आप इसके लिए कोई योग्य वर योग्य ढूंढिए
महर्षि सहमत हो गए उन्होंने कन्या को बुलाकर उसकी इच्छा जाननी चाही कन्या बोली साथ मेरे लिए कोई ऐसा वर ढूंढिए जो विश्व में सबसे ज्यादा शक्तिशाली हो
कन्या की इच्छा जानकर महर्षि जी ने अपने तपोबल से भगवान सूर्य का आवाहन किया सूर्यदेव प्रकट हुए तो महर्षि ने अपनी कन्या से कहा पुत्री यह सूर्यदेव है इनके ताप से ही सारा जग आलोकित होता है इनकी शक्ति अपार है तुम्हारी इच्छा हो तो मैं इनके साथ तुम्हारा विवाह कर दूं सूर्य के प्रकाश से कन्या की आंखें चौंधिया गई थी इसलिए उसने अपने हाथों से अपनी आंखों को ढकते हुए पिता से कहा नहीं तात इनमें तो बहुत ताप है मुझे पति के रूप में सूर्य देव स्वीकार्य नहीं है इन से अच्छा कोई और वर चुनिए महर्षि ने सूर्यदेव से पूछा कि वह स्वयं से अच्छा कोई वर बताएं तो सूर्यदेव ने कहा मुनिवर मुझसे श्रेष्ठ मेघ हैं जो मुझे ढक कर छुपा देते हैं
इस पर महर्षि ने मेघ देव का आवाहन किया और कन्या को बुलाकर उसकी इच्छा जाननी चाही तो वह बोली नहीं तात मुझे यह भी स्वीकार्य नहीं है इनका तो रंग बहुत ही काला है कोई इनसे भी अच्छा वर चुनिए !
महर्षि ने मेघ देव से भी पूछा कि उन से अच्छा कौन है तो मेघ देव बोले मुनि श्रेष्ठ मुझसे शक्तिशाली और श्रेष्ठ वायु देव हैं वह जब चाहे मुझे किसी भी दिशा में उड़ा कर ले जा सकते हैं इस पर महर्षि ने वायु देव को बुलाया तो ऋषि पुत्री कहने लगी नहीं तात मैं इनसे भी विवाह नहीं कर सकती इनकी गति अत्यंत चंचल है
महर्षि ने वायु देव से भी पूछा कि आप से श्रेष्ठ यदि कोई अन्य है तो उसका नाम बताएं इस पर वायु देव ने कहा महर्षि मुझसे शक्तिशाली पर्वतराज हैं जो जब चाहे मेरी गति को कमजोर कर देते हैं उनके अस्तित्व के आगे मेरी कोई शक्ति काम नहीं करती महर्षि ने पर्वतराज को भी बुलाया किंतु ऋषि पुत्री ने उसे भी यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि यह बहुत कठोर और गंभीर हैं तब पर्वतराज ने महर्षि के पूछने पर अपने से श्रेष्ठ व्यक्ति का नाम बताया पर्वतराज ने कहा देव मूषक मुझसे भी ज्यादा शक्तिशाली है वह मेरे कठोर पत्थरों में भी छेद कर डालता है वह तो मुझे जड़ से इतना खोखला कर देता है कि मेरा अस्तित्व ही बह जाता है
महर्षि ने तब मूषकराज को बुलाया और अपनी कन्या से उसके विषय में विचार करने को कहा तो ऋषि कन्या पहली ही दृष्टि में उस पर मोहित हो गई और बोली तात यही मेरे लिए उपयुक्त वर हैं मुझे मूषक बनाकर इनके हाथों सौंप दीजिए इस पर महर्षि ने अपने तपोबल से फिर से उसे चूहा बना दिया और मूषक के साथ उसका विवाह कर दिया हमारे पूर्वजों का यह कथन सत्य ही है कि व्यक्ति का जाति प्रेम सहज ही नहीं छूट पाता