चार ब्राह्मण
एक जंगल के बीच में एक आश्रम था वहां चार ब्राह्मण गुरुजी के पास शिक्षा ग्रहण किया करते थे एक दिन गुरुजी ने कहा –
बच्चों आज से तुम्हारी सभी शिक्षा पूरी हुई अब तुम सभी अपने गांव जाओ
गुरुकुल में तुमने जो कुछ भी सीखा है उस ज्ञान का प्रयोग सिर्फ लोगों की भलाई के लिए इस्तेमाल करना – भगवान आप सभी को सफल बनाएं
गुरुजी ने एक शिक्षक को अकेले में बुलाकर कहा बेटा गंगाधर मैंने तुम चारों को एक समान ही ज्ञान दिया है
पर ना जाने क्यों तुम बाकी तीनों से थोड़ा पिछड़ गए पर डरने की कोई बात नहीं है
हर किसी में कोई ना कोई खास बात जरूर होती है और तुम्हारी खासियत यह है कि तुम्हें कब किसके साथ कैसा व्यवहार करना है यह तुम्हें पता है यह गुण तुम्हें बाकियों से अलग ही बनाता है
तुम्हारी इसी गुण के कारण तुम्हारा जीवन भी सुखमय होगा अब जाओ मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है
फिर चारो आश्रम से निकल पड़े चलते-चलते एक ने कहा हमने इतने समय साथ साथ पढ़ाई की और बड़े हो गए अब अलग होने का समय आ गया है मुझे बहुत दुख हो रहा है
दूसरा ब्राह्मण – हां मित्र दुख तो हमें भी बहुत हो रहा है इसलिए मैंने कुछ सोचा है क्यों ना हम चारों राज महल चलें और महाराज से काम मांगे अगर हमें राज महल में काम मिलता है तो हम भी वहां साथ रह सकेंगे
तीसरा ब्राह्मण – विचार तो बहुत अच्छा है पर मुझे एक संदेह है
पहला ब्राह्मण – गंगाधर पढ़ाई मैं हमसे पिछड़ा हुआ है कहीं राज्यसभा में इसकी कमियों की वजह से हमें भी काम ना मिले
दूसरा ब्राह्मण – बात तो तुम सही कह रहे हो इस बारे में तो हमने सोचा ही नहीं
चौथा ब्राह्मण – ऐसा ना कहो मेरे भाइयों मैंने भी तुम्हारी तरह एक ही गुरु गुरु से ज्ञान लिया है और तुम्हारी तरह ही मेहनत की है अब मैं तुम सबसे पिछड़ गया इसमें मेरा क्या दोष मुझे भी अपने साथ ले चलो मुझे तुम लोगों जैसा बड़ा पद नहीं भी मिलेगा तो चलेगा मैं कोई छोटा-मोटा काम कर लूंगा
दूसरा ब्राह्मण – ठीक है
और चारों ब्राह्मण जंगल की ओर चल दिए अचानक उन्हें कुछ हड्डियां दिखी और वह चारों वहां पहुंचे
दूसरा ब्राह्मण – यह तो किसी जानवर की हड्डियां लग रही है यही सही समय है अपने ज्ञान की परीक्षा लेने का क्यों ना अपने मंत्रों से एक जानवर में जान फूंक दी जाए
चौथा ब्राह्मण गंगाधर – बोला दोस्त गुरु जी ने जो कहा है वह भूल गए क्या इस जानवर को जिंदा कर के देश और समाज का क्या लाभ होगा और यह तो प्रकृति के नियम के विरुद्ध है
पहला ब्राह्मण – चुप कर हमें ही सिखाने की कोशिश कर रहा है हमारी विद्या का कैसे प्रयोग करना है हमें अच्छी तरह मालूम है
और उसने मंत्र पढ़ना शुरू किया ओम क्लीम चामुंडाए विच्चे छू
और सभी हड्डियां एक साथ जुड़ गई तभी दूसरे ब्राह्मण में मंत्र पढ़ा
ओम क्रिंग रिंग नमः थथथ
और उन हड्डियों पर मांस चढ़ गया और वह एक बब्बर शेर में बदल गया
तीसरा ब्राह्मण – अब मेरी बारी है अब मैं अपने मंत्र शक्ति सही इसमें जान डालूंगा
तभी गंगाधर बोला रुक जाओ दोस्तों तुम्हें समझ में भी आ रहा है कि तुम क्या कर रहे हो अगर तुम इसे जिंदा करोगे तो वह हमें ही मार देगा कृपया करके मेरी बात मानो और यहां से भाग चलो
तीसरा ब्राह्मण – अरे भाई तुम बहुत डरपोक हो इतना डरोगे तो जीवन कैसे चलेगा और वैसे भी अगर उसे हम जीवित करेंगे तो वह हमें क्यों मारेगा
उसको जिंदा हमने किया है यह हमें पता है
चौथा ब्राह्मण – पर उसे कहां पता है एक काम करो मुझे इस पेड़ पर चढ़ जाने दो फिर जान डालना
और वह पेड़ के ऊपर जाकर बैठ गया
तीसरा ब्राह्मण ने फिर मंत्र पढ़ा आबरा का डाबरा गिली गिली छू – बब्बर शेर जिंदा हो जा तू
और शेर जिंदा हो गया और वहां उन्हें मारने के लिए उन पर लपका और वह तीनों भाग खड़े हुए
तो बच्चों हम कितना भी ज्ञान सीख ले कर उससे कब कहां और कैसे प्रयोग करना हो ना पता हो तो वह ज्ञान किसी काम का नहीं