एक गांव में चार ब्राह्मण युवक रहा करते थे वे चारों ही बड़े गरीब थे अपनी गरीबी से उकताए इन युवकों ने सोचा – क्यों ना किसी और जगह जाकर किस्मत टटोले शायद कुछ बात बने हमारी हालत सुधरे उन्होंने निर्णय कर लिया कि अब यहां नहीं रहेंगे चारों युवक चुपचाप अपना घर-बार छोड़कर निकल पड़े जल्दी ही उन्हें अपनी यात्रा पूरी होती दिखी
वह एक शहर के करीब पहुंच गए शहर के बाहर एक मंदिर बना था जहां एक योगी आदित्य नाथ विराजमान थे चारों ने यात्रा की थकान यही मिटाने का निश्चय किया मंदिर नदी के किनारे था इसलिए वे नहाकर योगी आदित्य नाथ के दर्शन करने पहुंचे
युवकों ने योगी आदित्य नाथ को आदरपूर्वक प्रणाम किया और उनके समीप खड़े हो गए योगी आदित्य नाथ ने पूछा तुम लोग कौन हो ? कहां जा रहे हो ? तुम्हारी इस यात्रा का क्या प्रयोजन है ? महात्मा जी हम वहां जा रहे हैं जहां हमें या तो धन मिले या मृत्यु आप इतने बड़े ज्ञानी हैं आप हमें मार्ग बताएं जिससे हम धन कमा सके वह चारों बोले
योगी आदित्य नाथ को इन अति उत्साही नासमझो पर तरस आ गया उन्होंने प्रत्येक को सूत्र से बनी एक बत्ती दी और कहा आप लोग हिमालय की दिशा में जाओ रास्ते में जहां भी यह बत्ती जिस किसी के हाथ से गिरे वही खोदना शुरू कर देना आपको खजाना मिलेगा उसे लेकर घर वापस लौट आना
योगी आदित्य नाथ की बात वह भी खजाने की कल्पना ने उन्हें उत्साह से भर दिया उन्होंने योगी आदित्य नाथ को जल्दी-जल्दी प्रणाम किया और हिमालय की ओर चल पड़े कुछ दिन चलने के बाद उनमें से एक की बत्ती गिर गई उसने वहां खोदा तो उसे तांबा मिला
वह उसे जल्दी-जल्दी भरते हुए अपने साथियों से बोला तुम भी भर लो हम इसे लेकर घर लौट चलें आगे जाने का कोई मतलब नहीं लेकिन तीनों ने जवाब दिया मूर्ख हम कितना भी तांबा ले जाएं गरीब के गरीब ही रहेंगे हमें आगे चलना होगा तुम जाना चाहो तो आगे जाओ मैं तो इस तांबे से ही संतुष्ट हूं और इसे लेकर घर जा रहा हूं
यह कहकर पहला ब्राह्मण युवक तो घर की ओर लौट पड़ा और बाकी तीन आगे की यात्रा का निश्चय कर हिमालय की ओर चल दिए
कुछ ही दिन बीते थे कि दूसरे युवक के हाथ से भी बत्ती गिर गई उसने खोदने में देरी नहीं कि जल्दी ही उसे खोदते – खोदते चांदी का एक मटका मिला वह जोर से चिल्लाया यहां देखो ! यह चांदी है इसे भर ले चलते हैं अब हमें आगे जाने की कोई जरूरत नहीं लेकिन बाकी दो बोले – कैसी मूर्खता की बातें करता है इस चांदी से हम ज्यादा अमीर नहीं होने वाले हमें आगे चलना होगा पहले तांबा मिला फिर चांदी अब शायद सोना मिले
दूसरों युवक ने आगे जाने से मना कर दिया वह चांदी से ही संतुष्ट था इसलिए घर को लौट पड़ा बाकी दो ब्राह्मण युवक और भी ज्यादा धन की लालसा में आगे चल दिए कुछ दिन बाद तीसरे ब्राह्मण के हाथ से बत्ती गिरी उसने जमकर खोदा और फिर चिल्लाया सोना ! उसे सोने का भंडार मिल गया था उसने अपने साथी से कहा देखो मैं सही कह रहा था कि सोना मिलेगा आओ हम खूब सोना भर ले फिर घर लौट कर अमीर हो जाएंगे अब आगे जाने की कोई जरूरत नहीं
लेकिन चौथा युवक उसकी बात से सहमत नहीं था वह बोला मुर्ख कहीं के तुम क्यों नहीं सोचते कि पहले हमें तांबा फिर चांदी और अब सोना मिला है शायद अब की बार हीरे जवाहरात ही मिलेंगे
सोने का बोझ क्यों उठाएं जब मुठी भर हीरे से ही हम अमीर बन सकते है हमे आगे चलना चाहिए चौथ ब्राहाण अब अकेला था थकी हालत में वह भूखा – प्यासा जाते – जाते मार्ग से भटक गया इधर जाना है या उधर इस चक्कर में वह एक ही जगह गोल गोल घूमने लगा
अचानक उसकी निगाह एक खून से लथपथ व्यक्ति पर पड़ी उस व्यक्ति के सर पर एक चक्र जोर से घूम रहा था युवक उसके पास पहुंचा और जिज्ञासा बस पूछने लगा आप कौन हैं ? आपके सिर पर यह चक्र क्यों घूम रहा है ? खैर जो भी हो मुझे जल्दी बताओ कि पानी कहां है मैं प्यास के मारे मरा जा रहा हूं
जैसे ही युवक की बात पूरी हुई वह चक्र अचानक उसके सिर पर आ गया अब युवक चिल्लाया – इसका क्या मतलब ? तब उस व्यक्ति ने कहा – मै भी ऐसी ही परिस्थिति मे आया था ब्राह्मण युवक ने उससे पूछा – इस चक्र से छुटकारा कैसे मिलेगा ?
उस व्यक्ति ने कहा – जब भी कोई अन्य व्यक्ति यहां बत्ती लेकर आएगा तो तुम्हारे सिर का चक्कर उसके सिर पर चला जाएगा
तब युवक ने पूछा तुम इस चक्र को सिर पर रखे पानी भोजन की व्यवस्था कैसे करते थे ? उस व्यक्ति ने बताया – मित्र ! यहां जो आता है वह भूख-प्यास बुढ़ापा-मृत्यु सबसे परे रहता है
उसे मात्र कष्ट ही कष्ट रहता है तुम्हें तो पता होगा ? यह चक्र खजाने के राजा कुबेर का है और खजाना चुराकर कोई ले ना जाए इसलिए इसे बनाया गया है जादू की बत्ती से यह खजाना जा सकता था अब मुझे आज्ञा दो मैं घर जा रहा हूं यह कहकर वह व्यक्ति चला गया
काफी समय बीत जाने पर भी जब चौथा ब्राह्मण युवक नहीं लौटा तो उसकी प्रतीक्षा कर रहा तीसरा युवक उसे ढूंढने निकल पड़ा पैरों के निशान के सहारे वह जल्दी ही अपने मित्र के पास पहुंच गया जैसे ही दोनों ने एक-दूसरे को देखा तो चौथा युवक रो पड़ा
तीसरे युवक ने जब उसे रोते और उसके सिर पर चक्र घूमते देखा तो आश्चर्य से पूछा – यह क्या हो गया तुम्हें ! चौथा युवक ने कहा – यह लालच का फल है फिर उसने अपने साथ हुई पूरी कहानी सुना डाली
पूरी बात सुनकर तीसरा ब्राह्मण बोला देखो ! तुमने मेरी बात नहीं मानी मैंने तो पहले ही कहा था कि हम सोना लेकर घर चलते हैं पर तुम ही ना माने अब मुझे आज्ञा दो ! लेकिन तुम मुझे ऐसे छोड़ कर कैसे जा सकते हो ? चौथा युवक बोला अब तीसरे ने कहा – मुझे खेद है कोई मनुष्य तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता और मेरे पास तो तुम्हारी सहायता करने वाली शक्ति भी नहीं है फिर मैं यहां तुम्हारा मुख देख – देख कर दुखी होऊंगा
तब यह चक्र कहीं मेरे भी सिर पर आ गया तो इसलिए मुझे जाने दो और तुम यहीं रहकर लालच का फल भोग लो यह कहकर तीसरा युवक घर की ओरचला गया सचमुच ‘तृष्णा’ का अंत ही ‘कष्ट’ है और ‘संतोष’ का ‘सुख’