विक्रम ने भी ठान रखी थी कि वह बेताल को साधु के पास ले जाकर ही दम लेगा अतः उसने इस बार भी बेताल को वश में किया और कंधे पर लाद कर चल दिया इस बार बेताल ने यह कहानी सुनाई…..
उज्जैन नगरी में वासुदेव नामक एक ब्राह्मण रहता था उसका एक पुत्र था गुणाकर वासुदेव ने अपने पुत्र को पढ़ा लिखा कर योग्य शास्त्री बना दिया था किंतु गुणाकर को यह सब रास ना आया क्योंकि दुव्यसनो ने उसे चारों ओर से घेर रखा था वासुदेव ने अपने पुत्र को सही राह पर लाने का बहुत प्रयत्न किया किंतु गुणाकर तो संचित धन को लुटाने पर तुला था
वासुदेव ने जब देखा कि उसका पुत्र कुमार्ग को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है तो उसने अपने पुत्र को घर से निकाल दिया और उससे संबंध तोड़ लिए
घर से निकाल दिए जाने के बाद जब गुणाकर का सारा धन खत्म हो गया तब उसके मित्रों ने भी उससे किनारा कर लिया सब वही मित्र थे जिन पर गुणाकर धन लूट आया करता था समाज से मिली दुत्कार ने उसे अपने पराए का बोध करा दिया उसे अपने कुकृत्य पर ग्लानि हुई अब उसे अपने माता-पिता की याद आई जो हमेशा उसे जीवन की वास्तविकता से अवगत कराते रहते थे
उसके मन में विचार आया कि वह घर लौट कर माता-पिता से क्षमा मांग ले किंतु उसने विचार किया कि पहले उसे अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहिए उसके बाद कुछ बनकर ही वह घर लौटेगा
इस प्रकार वह सन्यासी बनकर जंगलों में भटकने लगा कई दिनों से भूखा प्यासा रहने के कारण उसकी दुर्दशा हो गई थी जब भूख सहन नहीं हुई तब वह मूर्छित होकर गिर पड़ा
एक सन्यासी की उस पर दृष्टि पड़ी उसने उसका उपचार किया तथा होश में लाया होश में आने पर गुणाकर ने उसका परिचय पूछा तो वह बोला – पुत्र मै एक सन्यासी हूं और इस वन में कठोर तपस्या करता हूं तुम कौन हो और क्यों परेशान हो ?
गुणाकर ने अपनी आपबीती सन्यासी को सुना दी सन्यासी ने अपनी सिद्धि के बल पर उसके लिए भोजन आदि की व्यवस्था कर दी साथ ही दो दासियां, आसन आदि भी वहां उपस्थित हो गए थे
गुणाकर यह सब देखकर चकित रह गया उसने भरपेट भोजन किया और उसके बाद विश्राम किया दासिया उसके पैर दबाते हुए पंखा झल रही थी
यह सब देखकर गुणाकर सन्यासी की शक्तियों से प्रभावित हो गया संध्या के समय गुणाकर सन्यासी से मिलने उसकी कुटिया में आया सन्यासी उस समय साधना में लीन था कुछ समय बाद सन्यासी ने आंखें खोली तो सामने गुणाकर को देखकर पूछा कहो पुत्र कैसे आना हुआ ?
महात्मन क्या मैं भी आपकी तरह सिद्धियां प्राप्त कर सकता हूं ?
कर तो सकते हो पुत्र किंतु बहुत ही कठिन तपस्या करनी होगी तरह – तरह के कष्ट झेलने पड़ेंगे
मुझे स्वीकार है महात्मन !
एक बार और सोच लो यह कोई सरल कार्य नहीं है
गुणाकर के बार-बार आग्रह करने पर सन्यासी मान गया उसने गुणाकर को बताया कि यह सिद्धि प्राप्त करने के लिए तीन चरणों में कठिन तपस्या करनी पड़ती है सन्यासी ने उसे पहले चरण की तपस्या का मंत्र दिया गुणाकर ने सन्यासी का आशीर्वाद लिया और तपस्या करने लगा
अतः घोर तपस्या करके गुणाकर ने सिद्धि प्राप्ति के प्रथम चरण को पूरा कर लिया सन्यासी को भी प्रसन्नता हुई उसने गुणाकर को दूसरे चरण का मंत्र दिया और कहा कि वहां अब इससे भी कठिन तपस्या के लिए तैयार हो जाए किंतु गुणाकर ने दूसरे चरण की तपस्या से पूर्व अपने माता – पिता के पास जाने की इच्छा जाहिर की
वह चाहता था कि अपने माता-पिता को भी दिखा दे कि वह अब उनका योग्य पुत्र बन गया है तथा तपस्या करके उसने कई सिद्धियां प्राप्त कर ली हैं
सन्यासी ने गुणाकर को माता-पिता से मिलने की आज्ञा दे दी गुणाकर ने अपने सिद्धि के बल पर माता-पिता के लिए कुछ उपहार प्राप्त किए और उनसे मिलने के लिए घर की ओर चल दिया
घर पहुंच कर उसने माता-पिता को प्रणाम किया और उपहार भेंट किए साथ ही यह भी बताया कि उसने कठिन तपस्या कर के सिद्धिया हासिल कर ली हैं तथा अभी और तपस्या करने के लिए उसे वापस जाना है उसके माता पिता अत्यंत प्रसन्न हुए कि उनका पुत्र सही राह पर आ गया है
माता-पिता से मिलकर गुणाकर वापस सन्यासी के पास आ गया और दूसरे चरण की तपस्या आरंभ कर दी
गुणाकर काफी समय तक तपस्या करता रहा किंतु से सिद्धि प्राप्त नहीं हुई तो वह संन्यासी के पास गया और इसका कारण पूछा
सन्यासी बोला पुत्र गुणाकर तुम्हारी दूसरे चरण की तपस्या कभी पूर्ण नहीं होगी क्योंकि तुम प्रथम चरण की सिद्धि भी खो हो चुके हो अब तुम्हें सिद्धियां प्राप्त करने के लिए पुनः प्रथम चरण से तपस्या आरंभ करनी पड़ेगी
जो आज्ञा महात्मन ! कहकर गुणाकर सच्ची लगन और निष्ठा से पुनः तपस्या करने लगा और अतः उसने तीनों चरणों की तपस्या पूर्ण कर के सभी सिद्धियों को प्राप्त कर लिया
विक्रम क्या तुम बता सकते हो कि गुणाकर ने अपनी पहली सिद्धि क्यों खो दी थी ?
बेताल बहुत ही साधारण सी बात है कोई भी तपस्या बीच में अधूरी नहीं छोड़नी चाहिए और यह तो सिद्धि प्राप्त हेतु तपस्या थी
गुणाकर ने पहली सिद्धि प्राप्त कर के बीच में ही तपस्या अधूरी छोड़ दी और अपने माता-पिता से मिलने चला गया इसलिए उसकी पहली सिद्धि भी जाती रही विक्रम ने उत्तर दिया
मुझे मालूम था तुम सही उत्तर दोगे, क्योंकि तुम बोल पड़े हो इसलिए मैं जा रहा हूं बेताल चला गया विक्रम भी उसके पीछे-पीछे शमशान की ओर चल पड़ा