बहुत समय पहले की बात है कि एक घने वन में क्रूर बहेलिया अपने शिकार की खोज में इधर-उधर भटक रहा था सुबह से शाम तक भटकने के बाद एक कबूतरी जैसे – तैसे उसके हाथ लग गई कुछ क्षणों बाद तेज वर्षा होने लगी सर्दी से कांपता हुआ बहेलिया वर्षा से बचने के लिए एक वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया
कुछ देर बाद वर्षा थम गई उसी वृक्ष की शाखा पर बैठा कबूतर अपनी कबूतरी के वापस लौटकर ना आने से दुखी होकर विलाप कर रहा था पति के विलाप को सुनकर उसे वृक्ष के नीचे बैठे बहेलिए के बंधन में फंसी कबूतरी अपने आप को धन्य मानते हुए बोली स्वामी मेरे लिए आप अपने मन को दुखी ना करें मुझे मालूम है कि आप मुझसे कितना प्रेम करते हैं आप का विलाप सुनकर मेरा मन तड़प उठा है
कबूतरी की आवाज सुनकर उसने शाखा से नीचे देखा तो उसकी पत्नी बहेलिए के बंधन में थी तुम यहां हो उसे देखकर कबूतर खुशी से झूम कर बोला –
हां स्वामी ! अब आप मेरे लिए सोचना छोड़कर ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनो यह वृक्ष हमारा निवास है और यह बहेलिया इसकी छत्रछाया में बैठा हमारा शरणागत और अतिथि है यह भूख और प्यास से व्याकुल है इसकी सेवा करना हमारा धर्म है
आप यह कदापि मत सोचिए कि इसने आपके पत्नी को बंदी बना रखा है इसलिए मेरे बंधन की बात भूलकर आप इस बहेलिए का यथोचित आतिथ्य करके अपने कर्तव्य का निर्वाह करें कबूतरी ने ऊंच-नीच का वर्णन करते हुए अपनी इच्छा प्रकट की
पत्नी की इच्छा अनुसार बड़े ही शांत स्वर में बहेलिए के पास आकर कबूतर ने कहा श्रीमान हमारे निवास में आपका स्वागत है आप मेरे अतिथि हैं मुझे बताइए कि मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं अतिथि भगवान का रूप होता है और उसकी सेवा करना हर गृहस्थ का कर्तव्य है
वर्षा हो चुकने के कारण तेज और ठंडी हवाएं चल रही है जिससे मुझे काफी ठंड लग रही है किसी प्रकार मुझे ठंड से बचाने की व्यवस्था करें बहेलिया ने कबूतर से कहा
बहेलिए की बात सुनकर कबूतर ने उड़ान भरी और थोड़ी ही देर में उसके आगे सूखी लकड़ियों का ढेर लगा दिया फिर कहीं से अंगारा लाकर उन लकड़ियों में आग लगा दी आग की गर्मी से बहेलिए को काफी आराम मिला और उसकी ठंड जाती रही वहां अपने आपको काफी प्रसन्न और स्वस्थ अनुभव करने लगा
मैं कितना अभागा हूं कि घर आए अतिथि को खिलाने के लिए मेरे पास इस वक्त कुछ भी उपलब्ध नहीं है कबूतर ने अपनी बेबसी जताते हुए कहा
अतिथि का स्वागत सम्मान करना ही बहुत है भूख तो बर्दाश्त की जा सकती है लेकिन अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता बहेलिए ने कहा
श्रीमान आप चिंता ना करें मैं अपने आप को आग में झोंकता हूं आप मेरा मांस खाकर अपनी भूख शांत करें यह कहकर कबूतर उसी क्षण स्वयं को आग में झोंक दिया
पति के आत्मदाह कर लेने के कारण विधवा हुई कबूतरी भी अपने जीवन को व्यर्थ मानती हुई और रोती बिलखती उसी अग्नि में प्रविष्ट हो गई कबूतर और कबूतरी द्वारा अपने प्राणों की आहुति देने के कारण बहेलिया काफी दुखी हुआ
उसने सोचा कि इस पक्षी दंपति की मौत का जिम्मेदार वह स्वयं है इसलिए उसने घर जाकर सुख भोगने का विचार हमेशा के लिए त्याग दिया और घने वन में जाकर कंद-मूल फल खाकर अपना जीवन व्यतीत करने लगा
कथासार
अतिथि चाहे शत्रु ही क्यों ना हो उसे भगवान का स्वरूप मानकर उसकी सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने में तनिक भी संकोच नहीं करना चाहिए यही हर गृहस्थ का कर्तव्य है अतः सदैव अतिथि धर्म का पालन करें